नेमीश्वर धाम विद्या ज्योतिर्मय तीर्थ की स्थापना


नेमीश्वर धाम विद्या ज्योतिर्मय तीर्थ की स्थापना


 सतना । स्थानीय पन्नीलाल चौक मे स्थित श्री महावीर दिगंबर जैन मंदिर शीघ्र अतिशय क्षेत्र के रूप में विकसित होगा ! उल्लेखनीय है कि नगर में पिछले लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व निर्मित श्री महावीर दिगंबर जैन मंदिर का  पुनः निर्माण श्री महावीर दिगंबर जैन परमार्थिक संस्था के द्वारा कराया जा रहा है! समाधि सम्राट राष्ट्र संत आचार्य भगवान श्री विद्यासागर जी महाराज की भावना के अनुरूप मंदिर जी को एक आदर्श क्षेत्र के रूप में विकसित करने का निर्णय संपूर्ण समाज के द्वारा लिया गया था ! 

आचार्य भगवान श्री समय सागर जी की प्रेरणा से बनने वाले इस क्षेत्र के प्रति सतना के लोगों में अत्यंत उत्साह के भाव है ! विगत 8 जनवरी को आचार्य भगवन समय सागर जी के सतना आते ही लोगों के भाव मंदिर नव निर्माण के होने लगे थे! जिसे आचार्य श्री के समक्ष  अभिव्यक्त करने पर उन्होंने समाज को मंदिर नव निर्माण के लिए आशीर्वाद प्रदान किया! और मंदिर के नवनिर्माण की राह आसान हुई ! 

      

आज हुआ शिलान्यास

 आचार्य भगवान श्री समय सागर जी महाराज ससंघ के मंगल सानिध्य में सतना नगर में विकसित होने जा रहे तीर्थ क्षेत्र का भूमि शुद्धिकरण एवं शिलान्यास समारोह संपन्न हुआ! आज दोपहर 2:26 पर शुभ मुहूर्त में बाल ब्रह्मचारी श्री विनय भैया जी के नेतृत्व में  दिगंबर जैन श्रावको के द्वारा शिलान्यास विधि धार्मिक रीति रिवाज एवं मंत्रोच्चार के मध्य संपन्न हुई! 



शिलान्यास विधि समारोह में 40 साधुओं का मंगल सानिध्य एवं अशोकनगर गुना कटंगी जबेरा आदि देश के विभिन्न हिस्सों से पधारे हुए जैन धर्मावलंबियों की उपस्थित उल्लेखनीय रही!

 हजारों वर्षों तक जैन संस्कृति का रहेगा प्रतीक

स्थानीय महावीर दिगंबर जैन मंदिर का विकास तीर्थ क्षेत्र के रूप में चल रहा है! निर्माण होने वाला मंदिर लाल पाषाण से निर्मित होगा एवं यह हजारों हजार वर्ष तक जैन संस्कृति की रक्षा एवं उसके प्रचार प्रसार में सहायक सिद्ध होगा !लाल पाषाण से बनने वाला अद्भुत जैन मंदिर तीन खंड का एक उत्तुंग जिनालय होगा ! दूर-दूर से इस जिनालय के गगनचुंबी शिखरो के दर्शन जन सामान्य को हो सकेंगे!   

   

ऐसी होगी मंदिर की रचना

 निर्माणाधीन मंदिर लाल पाषाण से तो निर्मित होगा ही इसके साथ इस मंदिर में पंच बालयति तीर्थंकर भगवान की विशाल पद्मासन प्रतिमाएं स्थापित की जाएगी जिससे यह मंदिर पंच बा लयती मंदिर कहलाएगा !एक वेदिका पर जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव एवं उनके पुत्र भगवान बाहुबली एवं भरत को विराजमान किया जाएगा ! वहीं एक वेदिका पर अतिशयकारी भगवान शांतिनाथ जी कुंथुनाथ जी एवं अरहनाथ जी की विशाल खडगासन प्रतिमा को विराजमान किया जावेगा !वही मंदिर का प्रमुख आकर्षण भूत भविष्य और वर्तमान काल के 24- 24 तीर्थंकर भगवंत की कुल 72 प्रतिमाएं अर्थात त्रिकाल चौबीसी की स्थापना भी उक्त मंदिर में की जावेगी! 

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आप ही करेंगे प्राण प्रतिष्ठा

 इस अवसर पर अपने भाव व्यक्त करते हुए .जैन समाज के अध्यक्ष डॉ अरविंद सराफ मंत्री अंशुल जैन एवं निर्माण कमेटी के अध्यक्ष इंजीनियर रमेश जैन ने आचार्य श्री से आग्रह करते हुए कहा कि हे भगवान हम सतना के जैन श्रावक आचार्य भगवन विद्यासागर जी के स्वपन को साकार करने के लिए प्रतिबद्ध एवं तत्पर है!आपकी प्रेरणा से हम इस कार्य को करने का भाव रखते हैं! हमारा यह कार्य शीघ्र ही पूर्ण हो ऐसी हम सभी की भावना है!आपने इस कार्य का शिलान्यास अपने सानिध्य में कराया है !अब आप श्री की ही  प्रेरणा और ससंघ सानिध्य में इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा गजरथ पंचकल्याणक भी संपन्न हो ऐसी हम सभी की भावना है!

         संकलित जानकारी के साथ अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी की रिपोर्ट 9929747312

भारतीय ज्ञान परंपरा में जैन दर्शन का योगदान

 


भारतीय ज्ञान परंपरा में जैन दर्शन का योगदान

भारतीय ज्ञान परंपरा अनेक दार्शनिक धाराओं से समृद्ध हुई है, जिनमें जैन दर्शन का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। जैन दर्शन न केवल आध्यात्मिकता का संदेश देता है, बल्कि यह तर्क, नैतिकता, अहिंसा और सामाजिक समरसता का भी आधार है। इसकी शिक्षाएँ हजारों वर्षों से भारतीय समाज और विश्व चिंतन को दिशा देती आ रही हैं।


अहिंसा: भारतीय संस्कृति को दिया अमूल्य उपहार

जैन धर्म का मूल सिद्धांत अहिंसा है, जिसे महावीर स्वामी ने अपने जीवन का आधार बनाया। उन्होंने कहा, "परस्परोपग्रहो जीवानाम्" अर्थात सभी प्राणी एक-दूसरे पर निर्भर हैं। यह विचार भारतीय समाज में करुणा, सहिष्णुता और शांति की भावना को प्रोत्साहित करता है। महात्मा गांधी के सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों पर भी जैन दर्शन का गहरा प्रभाव देखा जा सकता है।


अनेकांतवाद: सहिष्णुता और तर्कशक्ति का विकास

जैन दर्शन का एक महत्वपूर्ण योगदान अनेकांतवाद है, जो यह सिखाता है कि सत्य को केवल एक ही दृष्टिकोण से नहीं देखा जा सकता। प्रत्येक विचार और मत की अपनी प्रासंगिकता होती है। यह विचारधारा लोकतंत्र, संवाद और विविधता के सम्मान को बढ़ावा देती है।


अपरिग्रह: पर्यावरण संरक्षण और सादगी का संदेश

आज के उपभोक्तावादी दौर में जब भोगवाद और संसाधनों की अधिकता से पर्यावरण संकट बढ़ रहा है, जैन दर्शन का अपरिग्रह सिद्धांत (संपत्ति व इच्छाओं का न्यूनतम संग्रह) बेहद प्रासंगिक हो जाता है। यह विचार न केवल व्यक्तिगत संतोष बढ़ाता है बल्कि प्राकृतिक संसाधनों के संतुलन को भी बनाए रखने में मदद करता है।


भारतीय शिक्षा और साहित्य में योगदान

जैन मुनियों और आचार्यों ने प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश भाषाओं में विपुल साहित्य की रचना की। तत्त्वार्थसूत्र (उमास्वामी), न्यायावतार (सिद्धसेन दिवाकर) और समयसार (आचार्य कुंदकुंद) जैसे ग्रंथ भारतीय तत्त्वज्ञान और तर्कशास्त्र में मील का पत्थर हैं। जैन ग्रंथों ने न केवल दर्शनशास्त्र बल्कि गणित, ज्योतिष और व्याकरण के अध्ययन को भी समृद्ध किया है।


निष्कर्ष

जैन दर्शन का प्रभाव केवल धार्मिक सीमाओं तक नहीं बल्कि सामाजिक, दार्शनिक और वैज्ञानिक क्षेत्रों तक व्यापक रूप से देखा जाता है। इसकी शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और एक आदर्श समाज के निर्माण में सहायक हो सकती हैं। यदि हम जैन दर्शन के मूल सिद्धांतों – अहिंसा, अनेकांतवाद और अपरिग्रह – को अपने जीवन में अपनाएँ, तो न केवल हमारा समाज अधिक समरस और शांतिपूर्ण बनेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी मानवीय मूल्यों की रक्षा की जा सकेगी।

लेखक- मयंक कुमार जैन 
असिस्टेंट प्रोफेसर, मंगलायतन विश्वविद्यालय अलीगढ़ उत्तर प्रदेश

ज्ञान परम्परा मानव जाति को बचाने एवं भविष्य के निर्माण का माध्यम- प्रो भारद्वाज



ज्ञान परम्परा मानव जाति को बचाने एवं भविष्य के निर्माण का माध्यम- प्रो भारद्वाज

 दस दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन

लाडनूं 28 फरवरी (प्रेषक शरद जैन सुधांशु, लाडनूं)’आचार्य सिद्धसेन दिवाकर कृत सन्मतितर्कप्रकरण’ विषय पर दस दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन समारोह समणी नियोजिका मधुरप्रज्ञा जी के सान्निध्य में जैन विश्व भारती संस्थान के आचार्य महाश्रमण आडिटोरियम में हुआ। संस्थान के जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म-दर्शन विभाग के तत्वावधान एवं भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के प्रायोजकत्व में आयोजित इस समारोह की अध्यक्षता करते हुए संस्थान के कुलपति प्रो बच्छराज दूगड ने कहा कि सन्मतितर्क प्रकरण के माध्यम से अनेकात और स्याद्वाद का तार्किक विश्लेषण समझा जा सकता है। उन्होने कहा कि इन दस दिनों में जैन न्याय व ज्ञान मीमांसा को समझने का जो प्रयास हुआ है, इससे ज्ञान की वृद्वि हुई है। उन्होंने कहा कि सत्य सापेक्ष होता है, सत्य को जानने का लक्ष्य ही व्यक्ति को ज्ञान तक ले जाता है। कुलपति प्रो दूगड ने ज्ञान परम्परा के विभिन्न विद्वानों की चर्चा करते हुए कि आप, मैं, व हम सबके विचार जानने के बाद भी जो शेष रह जाता है, उसे मिलाने के बाद ही सत्य पूर्ण हो सकता है।  



समारोह के मुख्य अतिथि महर्षि वाल्मिकी विश्वविद्यालय हरियाणा के कुलपति प्रो रमेशचन्द भारद्वाज ने कार्यशाला में समागत विद्वानों को बधाई देते हुए कहा कि सन्मतितर्कप्रकरण के विश्लेषण के माध्यम से आपका ज्ञानार्जन हुआ है। जरूरत है कि इस ज्ञान को माध्यम बनाकर प्राकृत ग्रंथों को समझकर भारतीय ज्ञान परम्परा को आगे बढाने के लिए प्रयास किये जाये। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा केवल ज्ञान नहीं है बल्कि मानव जाति को बचाने एवं भविष्य के निर्माण का माध्यम है। प्रो भारद्वाज ने कहा कि मौलिक ग्रंथों को समझने के लिए तीन सूत्रों यथा काल को दृष्टिगत, वर्तमान संदर्भ एवं प्रांसगिकता एवं ज्ञान को प्रसारित करने का भाव का औचित्य होना चाहिए। इसके साथ ही आने वाली समस्या को सातत्यपूर्वक समझने से ही ज्ञान की आराधना संभव है।  

सान्निध्य प्रदान करते हुए समणी नियोजिका समणी मधुरप्रज्ञा ने कहा कि गंभीर अनुशीलन, सैद्वांतिक व्याख्या से ओतप्रोत समन्मतितर्क ग्रंथ वर्तमान में भी प्रांसगिकता है। 5वीं सदी का यह ग्रंथ आज भी सही दृष्टि प्रदान कर रहा है। उन्होंने ज्ञान परम्परा के आचार्यों की चर्चा करते हुए कहा कि भगवान महावीर का एक नाम भी सन्मति था। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि जैन विश्वभारती के पूर्व अध्यक्ष धर्मचन्द लूंकड थे। कार्यशाला के समन्वयक प्रो आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने दस दिवसीय कार्यशाला की विस्तृत रिर्पोट प्रस्तुत की। उन्होंने हुए सभी समागतों का आभार भी व्यक्त किया। विभाग की प्रो समणी ऋजुप्रज्ञा ने स्वागत वक्तव्य दिया। इस अवसर पर संभागी डाॅ विजय जैन, डाॅं संतोष जैन, जिनेन्द्र जैन ने अपने अनुभव प्रस्तुत किये। मुमुक्षु रक्षा द्वारा प्रस्तुत मंगलसंगान से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। अतिथियों का स्वागत प्रो रेखा तिवाडी, प्रो बीएल जैन आदि ने किया। कार्यक्रम का संयोजन डाॅ सत्यनारायण भारद्वाज ने किया। कार्यशाला में देश भर से समागत विद्वतजनों को अतिथियों द्वारा प्रमाण पत्र प्रदान किये गये।

-शरद जैन सुधांशु , जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय,  लाडनूं (राजस्थान)

गंधर्वपुरी में कायोत्सर्गस्थ एकल तीर्थंकर प्रतिमाएँ

गंधर्वपुरी में  कायोत्सर्गस्थ एकल तीर्थंकर प्रतिमाएँ


डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’,
22/2, रामगंज, जिंसी, इन्दौर, मो 9826091247

राजकीय संग्रहालय में गंधर्वपुरी में तीर्थंकरों की एकल प्राचीन प्रतिमाएँ बहुसंख्य हैं। इनमें से सत्तरह पद्मासन प्रतिमाओं का परिचय ‘‘एकल पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमाएँ’’ शीर्षक से दिया है। यहाँ नौ कायोत्सर्गस्थ प्रतिमाओं का संक्षिप्त परिचय यहाँ प्रस्तुत है। ये सभी प्रतिमाएँ गंधर्वपुरी राजकीय संग्रहालय के खुले वाड़े में रखीं हैं।


1. कायोत्सर्गस्थ एकल तीर्थंकर प्रतिमा-  यह प्रतिमा बलुआ पाषाण की समपादासन में कायोत्सर्गस्थ है, खण्डित होने पर भी मनोरम है। पादपीठ में कोई लांछन है, किन्तु सीमेन्ट के आधार पर स्थिरीकृत होने से छुप गया है। अनेक वर्षों से धूप, शर्दी, गर्मी, वर्षात् में खुले में रखी रहने से ललाट और वक्ष के पाषाण की पपड़ी उधड़ रही है। जिससे श्रीवत्स भी नष्ट हो गया है। इसका दक्षिण कर कोहनी के नीचे भग्न है। उष्णीष युक्त कुंचित केश हैं। कमल-पंखुड़ियों युक्त सुन्दर प्रभावल उत्कीर्णित है। चरणचौकी पर समानान्तर में दोनों ओर चामरधारी देव शिल्पित हैं। धामरधारियों के आभूषण विशिष्ट हैं, इन्हें बनमाला धारण किये हुए भी दर्शाया गया है। इनके बाह्य पार्श्व के स्थान में मूलनायक के बायें ओर तीर्थंकर की यक्षी शासनदेवी  और दक्षिण पार्श्व में शासन देव यक्ष शिल्पित है। मूल प्रतिमा के कर-मूल से स्कंधों तक के परिकर में कोई शिल्पांकन नहीं है। मस्तक के दोनों ओर सपत्नीक पुष्पवर्षक माल्यधारी गगनचर देव हैं। वे कुछ खण्डित हैं। इनसे ऊपर का वितान भाग छत्र- मृदंगवादक आदि भग्न और अप्राप्त हैं।


2. कायोत्सर्गस्थ एकल तीर्थंकर प्रतिमा-  बलुआ पाषाण की ही यह प्रतिमा अधिक क्षरित हो गई है। फिर भी वक्ष पर श्रीवत्स देखा जा सकता है। भुजाओं से नीचे के हस्त भग्न हैं। कुंचित केश और उष्णीष स्पष्ट है। प्रभावल त्रिस्तरीय बृहत् व कलायुक्त है। चँवर ढोराने वाले चमरी देव बहुत खण्डित हैं, तथापि उनके आकर अवशिष्ट हैं। त्रिछत्र स्पष्ट है, उसके ऊपर दुंदुभिवादक की पूर्ण आकृति है, किन्तु अत्यंत क्षरित है। प्रथम दृष्ट्या प्रतीत होता है कि यह एक लघु पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा है, किन्तु मृदंग भले ही खण्डित है किन्तु हाथ थाप देने के लिए उतने ही दूरी पर हैं, पद्मासन नहीं बन सकती है। एक और पहचान शेष है। इसकी भुजाओं में भुजबंध पहने दर्शाया गया है। मृदंगवादक के दोनों ओर अशोक वृक्ष की शाखाओं से लंबे-लंबे पत्रगुच्छक लटकते हुए दर्शाये गये हैं।



3. कायोत्सर्गस्थ एकल तीर्थंकर प्रतिमा-  इय क्षरित व भग्न कायोत्सर्गस्थ प्रतिमा की उदरावली, किंचित् श्रीवत्स, उष्णीष युक्त घुंघराले केश हैं। कर्ण स्कंधों को स्पर्शित हैं। पादयुगलों के समानान्तर दोनों पार्श्वों में चामरधारी शिल्पित हैं। दाहिनी ओर एक अपेचाकृत बड़ी स्त्री आकृति उत्कीर्णित है। शेष परिकर भग्न और अनुपलब्ध है।


4. कायोत्सर्गस्थ एकल तीर्थंकर प्रतिमा-  बलुआ पाषाण फलक पर शिल्पित इस प्रतिमा का घुटनांे से नीचे का भाग और टेंहुनी से नीचे का बाम हस्त खण्डित है। चामरधारी खण्डित होकर नष्ट हो गये हैं। स्कंधों को स्पर्श करते कर्ण, उष्णीषयुक्त कुंचित केश बृहत् कलात्मक भामण्डल है। झूलता हुआ सुन्दर छत्रत्रय, तदोपरि अर्धमृदंगवादक है, उसके दोनों ओर एक-एक आकृति है, जिनकी पहचान नष्ट हो गई है। माल्यधारी देव भी खण्डित व नष्ट हैं। इस प्रतिमा में एक विशिष्टता है कि तीर्थंकर के वाम भाग में एक द्विभंगासन में स्त्री छबि उत्कीर्णित है, यह आभरणों से भूषित है, अन्य पात्रों से बड़ी और तीर्थंकर से छोटी है।



5. कायोत्सर्गस्थ एकल तीर्थंकर प्रतिमा-  

यह प्रतिमा भी घुटनों से नीचे खण्डित और अप्राप्त है। चामरधारी रहे हैं, वाम भाग के चमरी का शिर दृष्ट है। प्रतिमा का श्रीवत्स अंशतः अवशिष्ट है। कर्ण स्कंधों को स्पर्श कर रहे हैं। सुंदर प्रभावल है, एक-एक माल्यधारियों की दोनों ओर उपस्थिति दर्शाई गई है। बड़ा सा छत्रत्रय और उसके ऊपर दुंदुभिवादक है। छत्रत्रय के दोनो ओर से अशोकवृक्ष के पत्रगुच्छ अवलंबित हैं।




6. कायोत्सर्गस्थ एकल तीर्थंकर प्रतिमा-  कायोत्सर्गस्थ सपरिकर यह प्रतिमा कई विशेषताओं युक्त है। यदि यह खण्डित न होती तब प्रतिमा विज्ञान का यह एक अनुठा उदाहरण होता, किन्तु इसका परिकर कहीं पूर्ण तो कहीं अंशतः खण्डित है। दोनों हाथ भग्न हें, वाम कर कलाई से नीचे का भग्न है तो दक्षिण भुजा से खण्डित है। वक्ष पर श्रीवत्स उपस्थित है, मुखमण्डल भग्न है, तथापि उष्णीष का अस्तित्व दृष्टिगत है, प्राभावल सुन्दर पंखुड़ियों युक्त है। तीर्थंकर प्रतिमा के चरणों के पार्श्वों में जो चँवरधारी देव शिल्पित होते हैं, यहाँ की आकृतियाँ पूरी तरह भग्न हैं, मात्र स्थान और भग्न की गई छबियों के किंचित् अवशेष हैं। तीर्थंकर के वाम पार्श्व में अपेक्षाकृत एक बड़ी राजसी मुद्रा चामरधारी की भूमिका में है, क्योंकि यह दाहिने हाथ से चँवर ढुराते हुए शिल्पित है। तीर्थंकर के दक्षिण पार्श्व में एक देवी उत्कीर्णित है, इसके वाम हस्त की हथेली में चक्र दर्शाया गया है।
प्रतिमा के प्रभावल के दोनों ओर माल्यधारी पुष्पवर्षक देव हैं। दाहिनी ओर का एक ही माल्यधारी है, किन्तु बायीं ओर के पुष्पवर्ष के बाह्य में एक बड़ी देवी है, जो गगनचर की ही देवी प्रतीत होती है। वितान का शेष भाग भग्न है। दाहिने पुष्पवर्षक के बाह्य में कुछ पीछे को बड़ा सा बहिर्मुख शार्दूल शिल्पित है।



विश्लेषण- 1. इसमें चामरधारियों के स्थान भग्न होने और एक ही आकृति के हाथ में चमर लिये हुए है, ऐसा उदाहरण हमने अन्यत्र नहीं देखा है। 2. चरणों के पार्श्वों में जो भग्न स्थान हैं उनमें द्विभंगासन में तीर्थंकर के यक्ष-यक्षी शिल्पित रहे हों। लेकिन चामरधारी देव एक रखने की परम्परा नहीं हैं।3. चामरधारी तीर्थंकर के गृहस्थ अवस्था का भाई राजा या राजकुमार हो सकता है क्योंकि इसके राजसी आभूषण भी हैं। 4. तीर्थंकर के दाहिनी ओर जो स्त्री आकृति है उसके बायें हाथ की हथेली में चक्र दर्शाया गया है और दक्षिण कर नीचे की ओर लम्बित है, उस में कोई अस्त्र या स्वयं का दुकूल पकड़े हुए प्रतीत होता है। 5. देवी प्रायः तीर्थंकर के बायें ओर शिल्पित किये जाने का नियम है। इस स्त्री पात्र की उपस्थिति यह कौन है इसका निर्धारण परिकर भग्न होने के कारण सम्भव नहीं है, केवल अनुमान ही किया जा सकता है। 6. केवल एक तरफ शार्दूल के शिल्पन से प्रतीत हो ता है कि यह सपरिकर तीर्थंकर प्रतिमा स्वतंत्र नहीं है, अपितु अन्य प्रतिमाओं के संयुक्त शिल्पांकन का एक भाग है।


7. कायोत्सर्गस्थ एकल तीर्थंकर प्रतिमा-  यह प्रतिमा कटि से नीचे पूर्ण भग्न व अप्राप्त है। यह स्तंभयुक्त देवकुलिका में स्थापित है। देवकुलिक शिखरयुक्त है। कटि से नीचे खण्डित होने पर भी इसे कायोत्सर्गस्थ प्रतिमाओं में इस कारण परिगणित किया गया है, क्योंकि सदि यह प्रतिमा पद्मासनस्थ होती तब पाश्वै के दोनों स्तंभ और दूर-दूर होते। तीर्थंकर का उष्णीष, ग्रीवा-त्रिवली, उष्णीष और कुंचित केश हैं। प्रतिमा के बाईं ओर के शार्दूल का कुछ भाग अवशिष्ट है।


8. कायोत्सर्गस्थ एकल तीर्थंकर प्रतिमा-  बलुआ पाषाण में ही निर्मित इस प्रतिमा का जंघ से नीचे का पूर्ण भाग हाथों सहित खण्डित और अप्रप्त है। अवशिष्ट प्रतिमा के दोनों पार्श्वों में स्तंभ हैं, इससे ज्ञत होताा है यह स्तंभयुक्त देवकुलिका में स्थापित रही होगी। इसके वक्ष पर श्रीवत्स लांछन स्पष्ट है। ग्रीवा-त्रिवली, कुंचित केश, उष्णीष और कलायुक्त प्रभाव दृष्ट है। शेष वितान भाग खण्डितत और अप्राप्त होने से परिकर का शिल्पांकन अज्ञात है।


9. कायोत्सर्गस्थ एकल तीर्थंकर प्रतिमा-  सामान्य पादपीठ पर समपादासन में कायोत्सर्ग जिन स्थापित शिल्पित हैं। इनका उदर-त्रिवली और वक्षस्थ श्रीवत्स लांछन स्पष्ट है। शेष स्कंधों से ऊपर के शिल्पांकन का शिलाफलक खण्डित व अप्राप्त है। तीर्थंकर की चरण चौकी से कुछ नीचे अलग आसन टंकित कर दोनों पार्श्वों में चामरवाहक देवों को चमर डुराते हुए शिल्पित किया गया है। दोनों चँवरी आभूषणों से भूषित हैं,, किन्तु इनके आभूषण अलग हटकर कुछ ग्रामीण परिवेश से प्रभावित जान पड़ते हैं।
इस तरह उक्त नौ कायोत्सर्गस्थ प्रतिमाओं में कुछ में कई विशेषताएँ हैं, जो अन्य सामान्य प्राचीन प्रतिमाओं में दृष्टिगत नहीं होती हैं। ये सभी प्रतिमाओं का समय 9वीं से 12वीं शती ईस्वी अनुमानित किया गया है।

आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी की सजीव प्रतिमा

 

आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी की सजीव प्रतिमा

आचार्य गुरुवर विद्यासागर की सिलिकॉन फाइबर से बनी प्रतिमा सजीव चित्रण प्रदर्शित करती है 

      विशाखापट्टनम 

  आचार्य गुरुवर विद्यासागर महाराज सिलिकॉन फाइबर से बनी एक प्रतिमा जो सजीव चित्रण देती है जो यह प्रदर्शित करती है कि साक्षात गुरु बैठे हो। 

       इसे किसने बनाया 

   यह प्रतिमा सभी के लिए चर्चा का विषय बनी हुई है हाल ही में इसके बारे में लोगों ने थोड़ी बहुत जानकारी साझा की थी लेकिन इसके विषय में हम आपको और पूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। इसे विशाखापटनम के अदभुत कलाकार वाई रविकांतजी ये सुंदर प्रतिमा तैयार की है.....जो लगभग 35 वर्षों तक ऐसे ही रहेगी.l


   मैंने स्वयं ने श्री रविचंदर से इसके बारे में जाना उन्होंने बताया की मूर्ति की सामग्री सिलिकॉन पेट की बनावट  एवं फाइबर क्लास से बनी है। उन्होंने बताया कि इसे बनाने में 3 महीने का समय लगा है। इसकी आंखें कांच की है एवं बाल नायलॉन के है। इसे उन्होंने काफी मेहनत से तैयार किया है। उन्होंने बताया कि गुरुवार की प्रतिमा को बनाकर एक अलग ही ऊर्जा का संचार मन में हुआ। वे ऐसी कई पेंटिंग के बनाते हैं। इसमें उनका अनुभव लगभग 22 वर्ष का है।

          अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी की रिपोर्ट 9929747312

गणाचार्य श्री विराग सागर जी के शिष्य स्थविर मुनि श्री विहित सागर जी महाराज का समाधि मरण



 गणाचार्य श्री विराग सागर जी के शिष्य स्थविर मुनि श्री विहित सागर जी महाराज का  समाधि मरण

बुंदेलखंड के प्रथमाचार्य, राष्ट्रसंत, भारत गौरव, उपसर्ग विजेता, गणाचार्य श्री 108 विराग सागर जी महामुनिराज के परम प्रभावक सुयोग्य शिष्य एवं मूल संघ के प्रमुख स्थविर मुनि श्री 108 विहित सागर जी महाराज का दिनांक 24 दिसम्बर 2024 को दोपहर 3 बजकर 3 मिनट पर समता पूर्वक  त्यागी भवन सताणा में समाधिमरण हो गया है।    25 दिसम्बर 2024 प्रातः 8 बजे त्यागी भवन से पावन खिण्ड परिसर के लिए डोला निकलेगा।

  मीडिया प्रभारी भरत सेठ पत्रकार घुवारा ने उक्त जानकारी दी है और भारतवर्ष के समस्त धर्मावलंबी महानुभावों से अधिक से अधिक संख्या में डोला में सम्मिलित होकर धर्म लाभ अर्जित करने की अपील की है।

गुरु शिष्य का नाता अमर कर दिया छपकराज मुनि श्री विहित सागर जी महाराज ने 

घुवारा/  (भरत सेठ पत्रकार ) बुंदेलखंड के प्रथमाचार्य, राष्ट्रसंत, भारत गौरव, उपसर्ग विजेता, समाधिस्थ  गणाचार्य श्री 108 विराग सागर जी महामुनिराज के परम प्रभावक सुयोग्य शिष्य स्थविर मुनि छपकराज विहित सागर जी महाराज गणाचार्य श्री विराग सागर जी महामुनिराज के मूल संघ के प्रमुख एवं ज्येष्ठ मुनि श्री 108 विहित सागर जी महाराज हमेशा मुस्कुराते हुए संघ में समस्त आगंतुक साधर्मी जनों से हमेशा एक ही बात अक्सर पूछते आपके यहां कौन से महाराज माताजी हैं अच्छे से सेवा व्यवस्था करना। आपने भोजन किया ठहरने की व्यवस्था हुई पूछते थे। हर जगह मंदिर तीर्थ क्षेत्रों के जीर्णाेद्धार विकास के लिए तत्पर रहते विशेष रूचि थी। 

     मुनि श्री विहित सागर जी महाराज का गुरु विरागसागर जी महामुनिराज के प्रति अपूर्ण समर्पण सेवा भाव था 24 घंटे आपकी आंखें गुरुदेव को निहारतीं रहतीं।

     ‌‌गुरु के पास पहुंचने मोक्ष महल की उत्तम भावना के साथ आप निरंतर त्याग बढ़ाते गये, उपवास बढ़ाते गये 24 घंटे कठिन साधना में लीन रहकर चारों प्रकार के आहार जल का त्याग कर गुरु की उत्कृष्ट समाधि को स्मरण करते हुए आज 24 दिसंबर दोपहर 3 बजकर 3 मिनट पर त्यागी भवन सताणा

जिला नासिक महाराष्ट्र में उत्तम सल्लेखना समाधि मरण को प्राप्त हो गए। 

     पूरे भारतवर्ष की जैन समाज को गुरु शिष्य के अमर नाता पर नाज रहेगा। मुनि श्री 108 विहित सागर जी महाराज को निश्चित ही मोक्ष मार्ग की प्राप्ति हुई है मुनि श्री को कोटि-कोटि नमोस्तु। 

छपकराज स्थविर मुनि श्री 108 विहित सागर जी महाराज का

        जीवन परिचय 

पूर्व नाम-श्री अनिल कुमार जैन 

ग्राम -   गोटेगांव जबलपुर मध्य प्रदेश 

पिता का नाम-श्री शिखर चंद जी 

माता का नाम-श्रीमति गिन्दी बाई

जन्म-10/12/1957

शिक्षा-मिडिल क्लास 

परिवार-3 भाई 2 बहन 

वैराग्य-आचार्य श्री सानिध्य वैयावृति

ब्रह्मचर्य व्रत-1982 दुर्ग 

क्षुल्लक दीक्षा-28/01/1995

मंगलगिरी सागर 

नाम-विहित सागर जी 

ऐलक दीक्षा-25/06/1998

       शैरीपुर लंकेश्वर

मुनि दीक्षा-14/12/1998

वरासो अतिशय क्षेत्र 

नाम-मुनि विहित सागर जी 

दीक्षा गुरु-परम पूज्य गणाचार्य श्री विराग सागर जी महामुनिराज 

संलेखना व्रत-17/12/2024 सताणा

सानिध्य -गणधर मुनी विवर्धन सागर जी महाराज, प्रवर्तन मुनि विश्व नायक सागर जी महाराज

जैन मन्दिर के शिलान्यास स्थल पर अराजक तत्वों द्वारा उपद्रव


https://twitter.com/DeveshJ58470564/status/1807387030034207097?t=WXwTFSMYjTiaxE1mMA_ONw&s=19


जैन मन्दिर के शिलान्यास स्थल पर अराजक तत्वों द्वारा उपद्रव


 नॉएडा के सैक्टर 161 में आज प्रस्तावित जैन मन्दिर के शिलान्यास स्थल पर निकटवर्ती गुलावली गाँव के अराजक तत्वों द्वारा उपद्रव


शिलान्यास हेतु पहुँचे आचार्य श्री वसुनंदी जी महाराज के पद विहार का भी उपरोक्त उपद्रवियों द्वारा विरोध


सेक्टर 161 नोएडा में एक भूखण्ड पर आज जैन मंदिर के निर्माण का शिलान्यास होना था जिसके लिए दिगम्बर जैन सन्त आचार्य श्री 108 वसुनन्दी जी महाराज (प्रख्यात आचार्य श्री विद्यानंद जी महाराज के शिष्य) भी पहुंचे थे। शिलान्यास की तैयारियों हेतु रात्रिकाल में ठहरे लोगों पर निकटवर्ती गुलावली गाँव के अराजक तत्वों ने अवैध हथियारों के साथ धावा बोल दिया (एक फायर होने की भी अपुष्ट सूचना है) और मन्दिर निर्माण का विरोध कर दिया। इस आपराधिक कृत्य के कारण आज का कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया है। जैन सन्त को पैदल ही बल्लभगढ़ जाना है अब उसका भी विरोध गुलावली के ये अराजक तत्व कर रहे हैं। वहाँ उपस्थित जैन समाज के लोगों से मौजूद पुलिसकर्मियों का कहना है कि आप सन्त जी को अपनी जिम्मेदारी पर ही ले जाएं, यदि कुछ घटना होती है तो आप जानें ।


सम्पर्क सूत्र :

मन्त्री – अजय जैन : 9971548889 अध्यक्ष - अजय जैन : 9456614258

ग्यारसपुर की बारह सौ वर्ष प्राचीन प्रतिमा




 ग्यारसपुर की बारह सौ वर्ष प्राचीन प्रतिमा



श्रमण संस्कृति के पुरातत्त्व का परिचय मध्यप्रदेश के विदिशा जिलान्तर्गत आने वाले ग्यारसपुर के पुरातत्त्व का उल्लेख कियेे बिना पूर्ण नहीं होता। ग्यारसपुर में मालादेवी मंदिर और बजरामठ जैन मंदिर 9वीं-10वीं शताब्दी में एक पहाड़ी पर कुछ पहाड़ी काटकर बनाये गये। यहाँ की पच्चीसों तीर्थंकर मूूर्तियाँ व सरस्वती, चक्रेश्वरी, अम्बिका आदि शासन देवी-देवों का उल्लेख प्राचीनता के कारण कई पुराविदों ने अपनी पुस्तकों, आलेखों आदि में किया है। इसी पहाड़ी के लगभग एक किलोमीटर की दूूरी पर श्री 1008 दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र चौबीसी मन्दिर है। इस मंदिर का कई बार जीर्णोद्धार हुआ। वर्तमान में भी जीर्णोद्धार हुआ है। इसके जीर्णोद्धार की ताम्र-प्रशस्ति बनने हेतु जब मेरे पास आई तब यहाँ की प्रतिमाओं की ओर मेरा ध्यान आकृष्ट हुआ। यहाँ कई प्राचीन प्रतिमाएँ हैं, जिसपर सम्भवतः पुराविदों का ध्यान नहीं गया।


पार्श्वनाथ चतुर्विंशतिका प्रतिमा


ग्यारसपुर का चौबीसी मन्दिर क्षेत्र कमेटी के अधीन है। सभी पूज्य प्रतिमाएँ हैं और प्रतिदिन अभिषेक पूजा होती है। यहाँ एक 4 फीट 9 इंच उत्सेधवाली भूूूरे बलुआ पाषाण की तीर्थंकर पार्श्वनाथ की प्रतिमा है, यह कायोत्सर्ग मुद्रा में है। इसका कमलपुष्प से अलंकृृृत पादपीठ है, जिसके दोनों ओर एक-एक आराधिका बैठी हुई हैं। दायें ओर की आराधिका पादपीठाभिमुख अंजलिबद्ध है, बांई ओर की आराधिका के दाहिने हाथ में पूजा का कुछ द्रव्य है, वह सम्मुख है। पार्श्वनाथ-प्रतिमाजी के दोनों पार्श्वों में चॅवरधारियों के स्थान पर तीर्थंकर के यक्ष-यक्षी ललितासन मुद्रा में हैं। प्रतिमाशास्त्रानुसार दाहिनी ओर चतुर्भुज यक्ष है, जिसके आयुध- कमलनाल, फल और वरदमुद्रा है। बांई ओर बैठी यक्षी की भी चार भुजाएँ हैं। दो हाथों में कमलनाल, एक में फल और एक वरदमुद्रा में है। यक्ष-यक्षी दोनों के शिर पर तीन-तीन सर्प-फण दर्शाये गयेा हैं, जो भग्न हैं। इन दोनों यक्ष-यक्षी के पादपीठ में भी कमल-पुष्प रेखांकित है। मुख प्रतिमा के पीछे से ऊपर को जाती हुई सर्पकुण्डली बनाई गई है, जो ऊपर जाकर तीर्थंकर के शिर पर सप्तफणों का छत्र बनाये हुए है। पारम्परिक त्रिछत्र भी है। प्रतिमा के उदर पर त्रिवली, वक्ष पर श्रीवत्स, कर्णों का स्कंधस्पृष्टन और सुन्दर उष्णीष युक्त कुंचित केश हैं। परिकर में बायें ओर ग्यारह और र्दाईं ओर बारह पद्मासनस्थ लघु जिन प्रतिमाएँ हैं। इस तरह परिकर की 23 और 1 मूलनायक मिलाकर चौबीसी बनती है। वितान में सप्तफण के दोनों ओर माल्यधारी गगनचर देव हैं, त्रिछत्र के ऊपर दुंदुभिवादक दर्शाया गया है, जो कुछ भग्न है। धरणेन्द्र यक्ष और पद्मावती यक्षी तथा सप्त सर्पफणों के अंकन से यह पार्श्वनाथ प्रतिमा है, और परिकर में 23 अन्य तीर्थंकर होने से चतुर्विंशतिका अभिहित की जाती है। ग्यारसपुर की प्रतिमाओं के चित्र हमें विदिशा के डॉ. पं. महेन्द्र जैन ‘विस्किट’ के सहयोग से सुलभ जैन ने सुलभ करवाये हैं।


विश्लेषण- इस प्रतिमा के परिकर में चॅवरवाहक नहीं हैं, जबकि 10वीं शताब्दी के उपरान्त की प्रायः सभी सपरिकर प्रतिमाओं में चॅवरवाहक अनिवार्यरूप से उत्कीर्णित किये जाने की परम्परा है। भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित जैन कला एवं स्थापत्य के प्रथम भाग में ग्यारसपुर टेकरी के मंदिरों की प्रतिमाओं का एक चित्र प्रकाशित हुआ है, जिसमें बहुत निचली पत्थर की चहार दीवारी के सहारे खुले आकाश में पाँच प्रतिमाएँ रखीं हैं। उनमें एक खण्डित चतुर्विंशतिका प्रतिमा भी है, जो 9वीं शताब्दी की निर्धारित की गई है। उस प्रतिमा से प्रस्तुत चौबीसी प्रतिमा में समानता है। चॅवरवाहकों की अनुपस्थिति, आराधक, यक्ष-यक्षी के अंकन आदि समान विशेषताएँ हैं। अतः यह प्रतिमा एक ही स्थान, समान पाषाण, समान शिल्पांकन के कारण उसके समकालीन 9वीं शताब्दी की है।


अन्य प्राचीन प्रतिमाएँ


उपरोक्त प्रतिमा के साथ ही वेदिका पर कई अन्य प्रतिमाएँ हैं। उनमें कुछ तो अर्वाचीन हैं और कुछ अत्यंत प्राचीन हैं। उनमें श्वेत पाषाण की संवत् 1593 की पद्मासन चन्द्रप्रभ भगवान्, संवत् 1665 कायोत्सर्गस्थ पार्श्वनाथ, श्याम पाषाण की पद्मासनस्थ चार लघु प्रतिमाएँ हैं। इनमें दो में एक-एक पंक्ति की प्रशस्ति है। एक में उल्टा स्वस्तिक बना है जो तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ की हो सकती है। एक श्वेत पाषाण की कायोत्सर्गस्थ पार्श्वनाथ की प्रतिमा है, इसके पादपीठ पर प्रशस्ति है, किन्तु वेदी पर स्थित किये जानेे के कारण सफेद सीमेन्ट लगने से अवाच्य है। यहाँ एक और पार्श्वनाथ की धातु की पद्मासन प्रतिमा उल्लेखनीय है। इसके 11 फणों का फलक व पादपीठ अलग भी हो जाते हैं। इस प्रतिमा के तलुओं व हथेलियों में रेखाएँ तो हैं ही, हथेली पर दो पुष्प और अंगूठे पर गुलाब-पुष्प का पत्र बना है। इस तरह की प्रतिमा अन्यत्र देखने में नहीं आयी है। 


-डॉॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘‘मनुज’, 

22/2, रामगंज, जिंसी, इन्दौर

मो 9826091247

जैन संस्कृति शोध संस्थान योग दिवस पर योग

 



जैन संस्कृति शोध संस्थान योग दिवस पर योग


-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर

इन्दौर। 21 जून। योग दिवस मान्य प्रधानमंत्री, ग्रहमंत्री से लेकर, सेना, विभिन्न संगठनों, संस्थानों ने और परिवारों ने भी योग किया है। अनुप्रेक्षा परिरवार ने जैन संस्कृति शोध संस्थान में योग का कार्यक्रम कर राष्ट्रीय योगदिवस के कार्यक्रम में अपनी सहभागिता दर्ज कराई है। इसमें 99 वर्ष की दादी श्रीमती सोनादेवी ने भी लिया। दृढ़ इच्छाशक्ति होने पर आवश्यक नहीं है कि कार्यक्रम के लिए विशाल जनसमुदाय ही एकत्रित हो, छोटे-छोटे समूह या एक-एक परिवार भी योग जैसा राष्ट्रीय कार्यक्रम कर राष्ट्र ओर दुनिया को सन्देश दे सकता है। योग के कार्यक्रम अनुष्का जैन ने संपन्न करवाये।




जैन संस्कृति शोध संस्थान के सचिव डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’ ने कहा कि आज मानव द्वारा प्रगति करने की प्रतिस्पर्धा, भाग-दौड़, आपाधापी के समय में शारीरिक और मानसिक स्वस्थता के लिए योग नितान्त आवश्यक है। योग के सही तरह से इस्तेमाल करने से हमारा तन और मन पूरी तरह से ठीक हो जाता है। जब हम बीमार होते हैं उसके लिए दवाइयाँ खाते हैं तो हम तन और मन से टूट रहे होते हैं। हमारा किसी काम को करने का मन नहीं करता है। योग करने से इंसान निरोग रहने के साथ उत्साहित महसूस करता है। यही उत्साह उसे जीवन मे सफलता के रास्ते पर आगे बड़ाता है। योग करने से 1. शरीर हमेशा ऊर्जावान रहता है, 2. इसके माध्यम से शरीर की थकावट दूर हो जाती है, 3. इसके माध्यम से हमारा शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, भावात्मक, आध्यात्मिक विकास होता है, 4 शरीर के प्रति संवेदनशीलता बढ़ती है, 5. मस्तिष्क शांत रहता है, 6. तनाव, अनिद्रा, थकावट से मुक्त करता है योग, 7. इससे व्यक्ति अपने मन, बुद्धि, शरीर, आत्मा से जुड़ा रहता है। ऐसा व्यक्ति जो भी कार्य करेगा, अपने मन, बुद्धि ,शरीर, को उस कार्य में लगा देता है, जिसके कारण वह कार्य अच्छे से कर सकता है, 9. इससे यक्ति परिवार, समाज, वातावरण से भी अपने आप जुड़ जाता है। इस योग के कार्यक्रम में श्रीमती सोना देवी जैन, अनुभव जैन, श्रीमती आशा जैन, सुश्री दामनी, श्रीमती रानी-राजू लाल शर्मा, सुश्री रूपाली जैन, मुस्कान, मुस्कान की माँ एवं बहिनें, कमला देवी आदि सभी सम्मिलित हुए।







योग दिवस की पूर्वबेला पर सागर महिला मण्डल ने करवाया योग





योग दिवस की पूर्वबेला पर सागर महिला मण्डल ने करवाया योग


सागर। 20 जून। योग दिवस की पूर्वसंध्या पर गौराबाई दिगम्बर जैन महिला मण्डल, सागर ने करवाया योग। स्थानीय श्री गौराबाई दिगम्बर जैन मंदिर परिसर में इस योग के कार्यक्रम का आयोजन किया गया। मण्डल की प्रमुख सदस्य व सिद्धार्थ नंदन पाठशाला की प्रधान शिक्षिका श्रीमती अनीता छाया ने योग के कार्यक्रम को संचालित करने में सहयोग किया। योग की प्रधान प्रशिक्षिका और शिविर आयोजिका श्रीमती हिमांशी अजय जैन ने सभी महिलाओं को योग करवाया व प्रशिक्षण दिया। इन्होंने स्वयं अर्हम् योग का प्रशिक्षण लिया हुआ है। श्रीमती आशा-अजय जैन ने मार्गदर्शन दिया। सभी महिलाएँ बहुत उत्साहित थीं। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की पूर्व बेला में ‘आओ चलें अर्हम् ध्यान योग की ओर’ कार्यक्रम लेककर हिमांसी जैन ने अपये वक्त्व्य में कहा कि योग से खुद से खुद का डॉक्टर बनते हैं, मानसिक रूप से स्वस्थ व शक्तिसंपन्न बनते हैं। वर्तमान लाइफस्टाइल में हम परिवर्तन ला सकते हैं और शारीरिक स्वस्थता, मानसिक तनाव से मुक्ति, भावनात्मक विकास, अशांत मन, अनिद्रा, डिप्रेशन और भी अनेक समस्याओं का समाधान प्राप्त कर सकते हैं। ये लाभ हैं योग के।





उक्त जानकारी देते हुए डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’ को महिलामण्डल की प्रमुख सदस्या ने बताया कि इस एक दिवसीय योग के शिविर के तात्कालिक लाभ देखकर गौराबाई महिलामण्डल की अध्यक्षा- श्रीमती हिमांशी जैन, सचिव- सुषमाराजू जैन एवं कोषाध्यक्ष सीमा तनीष जैन ने निर्णय लिया है कि आगामी 24 जून से 26 जून तक एक त्रिदिवसीय अर्हम् योग का प्रशिक्षण शिविर लगाया जायेगा जिसमें   मण्डल की सदस्यायें एवं समाज की अन्य कोई भी महिलाएँ प्रशिक्षण ले सकेंगीं। श्रीमती अनीता छाया ने बताया के योग से महिलाओं विशेष तौर पर कामकाजी महिलाओं, ऑफिस में दिनभर कम्प्यूटर पर बैठी रहने वाली नौकरीपेशा महिलाओं, गृहकार्यों में लगी रहने वालीं महिलाओं को योग से बहुत लाभ हो रहा है। ये महिला मण्डल इस तरह के कार्यक्रम अनवरत करवाता रहता है। महिला मण्डल की प्रमुख पदाधिकारी श्रीमती शकुन्तला जैन, नूतन नाहर, डॉ. आशा जैन, निधि खाद, अनीता जैन छाया, आशा सेठ, आशा अजय जैन, रक्षा विनेका, सुनीता सेसई, मंजू मगरया, वंदना सिंघई, संध्या सन्मति, सुनीता पड़वार, रानी जैन (सुपाड़ी), आरती सवाई, मिनी जैन आदि ने सक्रियता से भाग लिया।

गिरनार पर्वत की 5वीं टोंक पर 13 जुलाई 2024 को नेमिनाथ भगवान के मोक्षकल्याणक पर जैन समाज द्वारा निर्वाण लाडू अर्पण हेतु व्यवस्था कराएं गुजरात प्रशासन - विश्व जैन संगठन



गिरनार पर्वत की 5वीं टोंक पर 13 जुलाई 2024 को नेमिनाथ भगवान के मोक्षकल्याणक पर जैन समाज द्वारा निर्वाण लाडू अर्पण हेतु व्यवस्था कराएं गुजरात प्रशासन - विश्व जैन संगठन

 मेरठ |  थापर नगर, मेरठ में पूज्य आचार्य श्री सौरभ सागर जी मुनिराज के आगमन पर 12 जून को अरिहंत ज्वेलर्स द्वारा प्रसिद्ध कवि सौरभ सुमन के मंच संचालन और कवियत्री अनामिका अंबर की सहभागिता में संयोजित विशेष गुरुभक्ति कार्यक्रम में शिखर जी की पवित्रता हेतु अनशन आंदोलन प्रणेता जैन तीर्थों के संरक्षण हेतु सदैव समर्पित विश्व जैन संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री संजय जैन ने कार्यकारणी सहित उपस्थित होकर आचार्य श्री का आशीर्वाद और मार्गदर्शन लिया।

 अरिहंत ज्वेलर्स परिवार द्वारा संजय जैन का सम्मान किया गया।विश्व जैन संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री संजय जैन ने कहा कि देश भर में प्राचीन जैन तीर्थों पर अतिक्रमण स्वीकार नहीं इसके लिए चाहे प्राणों को ही क्यों न न्योछावर करना  पड़े। 


संगठन के अध्यक्ष ने 13 जुलाई 2024 को जैन तीर्थंकर नेमीनाथ भगवान के मोक्षकल्याणक के अवसर पर गिरनार पर्वत की पांचवी टोंक पर स्थित मोक्षस्थल पर जैन समाज द्वारा सुरक्षित रूप से निर्वाण लाडू अर्पण हेतु गुजरात सरकार से व्यवस्था करने की मांग की। 

संजय जैन ने उत्तर प्रदेश में प्राचीन जैन तीर्थों, और समाज के संरक्षण के लिए जैन कल्याण बोर्ड के गठन को आवश्यक बताया ताकि प्रदेश के सभी जैन तीर्थ और मंदिर आदि GPS के माध्यम से डिजिटल सूचीबद्ध हो सकें। 

पूज्य जैन आचार्य श्री सौरभ सागर जी मुनिराज ने गुरुभक्ति में उपस्थित भारी भीड़ को आशीर्वचन देते हुए तीर्थ संरक्षण हेतु मंगल आशीर्वाद और मार्गदर्शन दिया और विशेषरूप से युवाओं को धर्म और तीर्थों से जुड़ने का आह्वान किया। 

संगठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष यश जैन ने बताया कि संगठन की युवा प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय महामंत्री सागर जैन और संयम जैन द्वारा सरधना के पास नहर पर संचालित The River View Jain रिसॉर्ट में दिन में दिल्ली से आए कार्यकारिणी सदस्यों की बैठक हुई जिसमें युवाओं को संगठन से जोड़ने और अन्य आवश्यक विषयों पर चर्चा हुई।

कार्यकारिणी की सभा और गुरुभक्ति में दिल्ली से उपस्थित संगठन के राष्ट्रीय मंत्री मनीष जैन, प्रचार मंत्री प्रदीप जैन, वरिष्ठ सम्मानित सदस्य अशोक जैन, नीरज जैन, अमित जैन, अनुज जैन, युवा प्रकोष्ठ से देवेश जैन, पुलकित जैन, सरधना से संगठन की युवा प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय महामंत्री सागर जैन, संयम जैन अनेकों युवा साथियों के साथ और मेरठ व आसपास के क्षेत्र से संगठन के अनेकों सदस्य गुरुभक्ति में उपस्थित होकर पूज्य आचार्य श्री को श्रीफल अर्पित कर आशीर्वाद लिया।

आकाश जैन, राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी से प्राप्त जानकारी के साथ अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी की रिपोर्ट 9929747312

आचार्य श्री सौरभसागर जी द्वारा मेरठ में धर्म प्रभावना व विहार





आचार्य श्री सौरभसागर जी द्वारा मेरठ में धर्म प्रभावना व विहार


मेरठ । 12 जून। आज प्रातः श्री 108 संस्कार प्रणेता ज्ञानयोगी आचार्य श्री सौरभसागर जी मुनिराज का जैन बोर्डिंग हाउस, मेरठ से जैन मंदिर थापर नगर के लि विहार हुआ। बैंड बाजे नफीरी के साथ जयघोष के साथ विहार हुआ। अनेक स्थानों पर आचार्यश्री की आरती द्वारा वन्दना की गई। थापर नगर जैन मन्दिर में आचार्यश्री के पावन सान्निध्य में श्री शान्तिनाथ भगवान का अभिषेक व शान्तिधारा संपन्न हुई। जिसके पुण्यार्जक रहे श्री दिनेशचंद जैन, श्री अजय राय जैन, श्री नवीन जैन, श्री अशोक जैन।

मंदिर जी से आचार्य श्री सौरभसागर जी समाजजनों के साथ श्री अरहन्त ज्वैलर्स के निवास स्थान पर पहुँचे, आरती कर शुभाशीर्वाद प्राप्त किया। श्री दिनेश जैन अध्यक्ष थापर नगर  ने बताया कि वहाँ आचार्यश्री ने अपने प्रवचनों में कहा कि मैं अरहन्त का उपासक आज अरहन्त ज्वैलर्स के प्रांगण में उपस्थित हूँ। अरहन्त की भ्क्ति से सभी कार्य सिद्ध होते हैं, भक्ति में लीन होना पड़ता है। समर्पण भाव से आराधना करने से सफलता मिलती है।

दिनांक 13 जून को थापर नगर में मंशापूर्ण भगवान महावीर का विधान आचार्यश्री के सान्निध्य में, तदोपरान्त आशीर्वाद स्वरूप आचार्यश्री के प्रवचन होंगे। 14 जून को आचार्यश्री का असौडा हाउस जैन मन्दिर के लिये विहार होगा। श्री रीतेश जैन, अनुज जैन, रिशु जैन, संजय जैन, धनकुमार जैन, अंकुर जैन, दिनेश जैन, वीरेन्द्र जैन, रीतेश  जैन, अंकुर जैन आदि ने कार्यक्रम में सहयोग प्रदान कर पुण्यलाभ लिया।


-दिनेश जैन अध्यक्ष थापर नगर



पुरस्कारों की बंदर बांट

 पुरस्कारों की बंदर बांट

(आखिर क्यों सही से काम नहीं कर पा रही साहित्य अकादमियां?)


- डॉo सत्यवान सौरभ




पिछले दशकों में पुरस्कारों की बंदर बांट कथित साहित्यकारों, कलाकारों और अपने लोगों को प्रस्तुत करने के लिए विशेष साहित्यकार, पुरोधा कलाकार, साहित्य ऋषि जैसी कई श्रेणियां बनी है। जिसके तहत विभिन्न अकादमियां एक दूसरे के अध्यक्षों को पुरस्कृत कर रही है और निर्णायकों को भी सम्मान दिलवा रही है। इन पुरस्कारों में पारदर्शिता का अभाव है। राज्य अकादमी पुरस्कारों की वार्षिक गतिविधियां संदिग्ध है। जो कार्य एक वर्ष में पूर्ण होने चाहिए उनको करने में सालों लग रहें है। पुरस्कारों के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया स्पष्ट और समयानुसार नहीं है। साहित्य किसी भी देश और समाज का दर्पण होता है। इस दर्पण को साफ़-सुथरा रखने का काम करती है वहां की साहित्य अकादमियां। लेकिन सोचिये क्या होगा? जब देश या राज्य का आईना सही से काम न कर रहा हो तो वहां की सरकार पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है। जी हाँ, ऐसा ही कुछ हो रहा है देश के राज्यों की साहित्य अकादमियों में। किसी भी राज्य की साहित्य अकादमी के अध्यक्ष है होते हैं राज्य के मुख्यमंत्री। मुख्यमंत्री जिस संस्था के अध्यक्ष हो वही संस्था अगर सही से काम न करें तो बाकी संस्थाओं की स्थिति का अंदाज़ा आप लगा सकते है।

 *-डॉ. सत्यवान सौरभ* 

साहित्य किसी भी देश और समाज का दर्पण होता है। इस दर्पण को साफ़-सुथरा रखने का काम करती है वहां की साहित्य अकादमियां। लेकिन सोचिये क्या होगा? जब देश या राज्य का आईना सही से काम न कर रहा हो तो वहां की सरकार पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है। जी हाँ, ऐसा ही कुछ हो रहा है देश के राज्यों की साहित्य अकादमियों में। किसी भी राज्य की साहित्य अकादमी के अध्यक्ष है होते हैं राज्य के मुख्यमंत्री। मुख्यमंत्री जिस संस्था के अध्यक्ष हो वही संस्था अगर सही से काम न करें तो बाकी संस्थाओं की स्थिति का अंदाज़ा आप लगा सकते है।

आज हम देखते हैं कि अधिकांश साहित्य और कला अकादमियों के मंच पर पुरस्कृत होने वाले लोगों में अधिकतर को कोई जानता भी नहीं है। यह सच है कि आज जितनी राजनीति में राजनीति है उससे अधिक राजनीति साहित्य और कलाओं में है। प्रेमचंद ने साहित्य को राजनीति के आगे जलने वाली मशाल कहा था। लेकिन देश भर में आज साहित्य राजनेताओं के पीछे चल रहा है। पिछले दशकों में हुए साहित्य, संस्कृति और भाषा के पतन का असर आगामी पीढ़ियों तक जाएगा। लेकिन किसे फिक्र है। राज्य अकादमी पुरस्कारों की वार्षिक गतिविधियां संदिग्ध है। जो कार्य एक वर्ष में पूर्ण होने चाहिए उनको करने में सालों लग रहें है। पुरस्कारों के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया स्पष्ट और समयानुसार नहीं है। उदाहरण के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी के वार्षिक परिणामों की घोषणा का साल खत्म होने को है, मगर अभी तक नहीं हुई है। न ही आगामी साल का प्रपत्र जारी किया गया है। एक अकादमी के भीतर क्या- क्या खेल चलते है ? पारदर्शिता के अभाव में किसी को पता नहीं चलता।

वैसे कोई भी पुरस्कार या सम्मान उत्कृष्टता का पैमाना नहीं हो सकता। हिंदी भाषा में निराला, मुक्तिबोध, फणीश्वरनाथ रेणु, धर्मवीर भारती, राजेंद्र यादव, असगर वजाहत जैसे महत्वपूर्ण कवियों-लेखकों को भी साहित्य अकादमी पुरस्कार नहीं दिया गया और बहुत से ऐसे लेखकों को पुरस्कृत किया गया, जिन्हें कभी का भुलाया जा चुका है। इस बारे में विचार करना चाहिए और पुरस्कार की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाना चाहिए। आज जिस प्रकार से सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त करने के लिए कुछ योग्य एवं अयोग्य साहित्यकार, कवि, लेखक, कलाकार साम-दाम-दण्ड-भेद सब अपना रहे हैं और अपने प्रयासों में प्रायः सफल भी हो रहे हैं, उससे सम्मानों और पुरस्कारों के चयन की प्रक्रिया की विश्वसनीयता और पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है। पुरस्कारों की दौड़ में साहित्य का भला नहीं हो सकता।


पुरस्कारों की दौड़ में खोकर,

भूल बैठे हैं सच्चा सृजन ।

लिख के वरिष्ठ रचनाकार,

करते है वो झूठा अर्जन ।।

मस्तक तिलक लग जाए,

और चाहे गले मे हार ।

बड़े बने ये साहित्यकार।।




आज साहित्य और कला जगत में बहुत सी संस्थाएं काम कर रही है। जब मैं इन संस्थाओं की कार्यशेळी देखता हूँ या इनके समारोहों से जुडी कोई रिपोर्ट पढ़ता हूँ तो सामने आता है एक ही सच। और वो सच ये है कि किसी क्षेत्र विशेष या एक विचाधारा वाली संस्थाएं आपस में अग्रीमेंट करके आगे बढ़ रही है। ये एग्रीमेंट यूं होता है कि आप हमें सम्मानित करेंगे और हम आपको। और ये सिलसिला लगातार चल रहा है अखबारों और सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोरता है। खासकर ये ऐसी खबर शेयर भी खुद ही आपस में करते है। आम पाठक को इससे कोई ज्यादा लेना देना नहीं होता। अब बात करते है सरकारी संस्थाओं और पुरस्कारों की। इनकी सच्चाई किसी से छुपी नहीं। जिसकी जितनी मजबूत लाठी, उतना बड़ा तमगा। सिफारिशों के चौराहों से गुजरते ये पुरस्कार पता नहीं, किस को मिल जाये। किसी आवेदक को पता नहीं होता। इनकी बन्दर बाँट तो पहले से ही जगजाहिर है।  ऐसे पुरस्कारों की विश्वसनीयता को लेकर देश भर में गंभीर आरोप लग रहे हैं। सच्चा रचनाकार इनके चक्कर में कम ही पड़ रहा है।


अब चला हाशिये पे गया,

सच्चा कर्मठ रचनाकार ।

राजनीति के रंग जमाते,

साहित्य के ये ठेकेदार ।।

बेचे कौड़ी में कलम,

हो कैसे साहित्यिक उद्धार ।

बड़े बने ये साहित्यकार।।


आज  संस्थाएं एक दूजे की हो गयी है। एक दूसरे को सम्मानित करने और शॉल ओढ़ाने में लगी है। सरकारी पुरस्कार बन्दर बाँट कहे या लाठी का दम। जितनी जान-पहचान उतना बड़ा तमगा। ये प्रमाण  पुरस्कार विजेताओं की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते हैं। आज देशभर की साहित्य अकादमियां पद और पुरस्कारों की बंदर बांट करने में लगी है।अधिकांश अकादमियों के कामकाज को देखकर तो यही लगता है। जब तक विशेषज्ञता के क्षेत्र में राजनीतिक नियुक्तियां होती रहेगी तब तक ऐसी दुर्घटनाएं होती रहेगी। सिविल सेवा कमिशन और प्रदेशों की अकादमी में सदस्यों और अध्यक्षों की राजनीतिक नियुक्तियों ने इन संस्थाओं की विशेषज्ञता पर प्रश्न चिन्ह लगाए हैं। पिछले दशकों में पुरस्कारों की बंदर बांट कथित साहित्यकारों, कलाकारों और अपने लोगों को प्रस्तुत करने के लिए विशेष साहित्यकार, पुरोधा कलाकार, साहित्य ऋषि जैसी कई श्रेणियां बनी है। जिसके तहत विभिन्न अकादमियां एक दूसरे के अध्यक्षों को पुरस्कृत कर रही है और निर्णायकों को भी सम्मान दिलवा रही है। इन पुरस्कारों में पारदर्शिता का अभाव है। बिना साधना के कैसा साहित्य?


देव-पूजन के संग जरूरी,

मन की निश्छल आराधना ।।

बिना दर्द का स्वाद चखे,

न होती पल्लवित साधना ।।

बिना साधना नहीं साहित्य,

झूठा है वो रचनाकार ।

बड़े बने ये साहित्यकार।।



अब समय आ गया है कि देश की सभी राज्य अकादमियों को केंद्रीय साहित्य अकादमी की तरह सचमुच स्वायत बनाया जाए और इनका काम पूरी तरह से साहित्यकारों, कलाकारों को सौंपा जाए। किसी भी अकादमी के वार्षिक कार्यों की प्रगति समयानुसार और पूरी तरह पारदर्शी बनाने पर जोर देना होगा ताकि सच्चे साहित्यकारों का विश्वास उन पर बना रहे। 

उदाहरण के लिए हरियाणा हिंदी साहित्य अकादमी के वार्षिक पुरस्कारों की घोषणा जिसका राज्य के साहित्यकार बेसब्री से इंतज़ार करते है, के वर्ष 2022 के परिणाम अभी 2024 में भी जारी नहीं हुए है। इससे आप अंदाज़ा लगा सकते है कि समाज को आईना दिखाने वाले किस क़द्र सोये पड़े है। हरियाणा हिंदी साहित्य अकादमी हर वर्ष 12 से अधिक साहित्यिक पुरस्कार जिसमें एक लाख से सात लाख तक की पुरस्कार राशि दी जाती है और श्रेष्ठ कृति के अंतर्गत पद्रह सौलह विधाओं में 31 -31 हज़ार रुपये की राशि सम्मान स्वरुप प्रदान करती है। इन पुरस्कारों के अलावा वर्ष भर की श्रेष्ठ पांडुलिपियों को चयनित कर उन्हें प्रकाशन अनुदान प्रदान करती है। लेकिन हरियाणा में सरकारी भर्तियों की तरह ये भी बड़ा दुखद है कि जो परिणाम अगस्त में घोषित होने थे; वो अगले साल कि जनवरी बीत जाने के बाद भी नहीं घोषित किये गए न ही साल 2023 का प्रपत्र जारी किया गया जिसमें आने वाले साल के लिए साहित्यकारों को आवेदन करना होता है; आखिर क्यों ?

उम्मीद है कि राज्य सरकारें अकादमियों के वर्तमान विवादास्पद कार्यों की जांच कराएगी और अकादमी में योग्य और प्रतिभाशाली लेखक, कलाकारों को नियुक्त करेगी। ताकि देश भर पर भाषा, साहित्य और संस्कृति नित नए आयाम गढ़ती रहे।


- डॉo सत्यवान सौरभ,

कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,

333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी,

 हरियाणा – 127045, मोबाइल :9466526148,01255281381

स्वाध्याय से आत्मा का कल्याण होता हैं -आर्यिका श्री महायश मति माताजी




स्वाध्याय से आत्मा का कल्याण होता हैं -आर्यिका श्री महायश मति माताजी

बांसवाड़ा| आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज का संघ कमर्शियल कॉलोनी बांसवाड़ा में संघ सहित विराजित है आचार्य श्री की शिष्या आर्यिका श्री महायशमति माताजी ने उपदेश में स्वाध्याय क्यों किया जाता है, स्वाध्याय का जीवन में क्या लाभ है ,स्वाध्याय से जीवन में क्या परिवर्तन आता है ,इस पर अपना उपदेश दिया माताजी ने प्रवचन में बताया कि स्वाध्याय करने के बिना जीवन अधूरा है। स्वाध्याय का शाब्दिक अर्थ देखें तो आत्मा में ज्ञान की प्राप्ति होना स्वाध्याय है।  आत्मा जो  राग द्वेष , क्रोध्र मान माया लोभ पंचेेंद्रीय विषय भोगों कर्ण कर्मों से बंधी है ।आत्मा से कषाय और कर्म  कैसे कम हो ,कैसे कर्मों का नाश हो यह स्वाध्याय करने से प्राप्त होता है। स्वाध्याय से आत्मा का कल्याण होता है।संसारी प्राणी का जीवन कष्ट और दुख में है वह सुख की खोज कर रहे हैं भगवान के उपदेश को जीवन में नहीं उतर रहे हैं स्वाध्याय से आत्मा में ज्ञान की प्राप्ति होती है इससे जीवन में परिवर्तन होता है इसलिए आगम प्रणित प्राचीन ग्रंथ जो पूर्वाचार्य ने लिखे हैं उनका प्रतिदिन स्वाध्याय करना चाहिए  आज के मानव का जीवन  समाचार पत्र और मोबाइल से होता है इनमें  मोबाइल देखने समाचार देखने पढ़ने से आत्मा का कल्याण नहीं होता है आत्मा का कल्याण धार्मिक ग्रंथो के स्वाध्याय से होता है ।स्वाध्याय से भेद विज्ञान प्राप्त होता है कि आत्मा अलग है, शरीर अलग है स्वाध्याय से मन पर नियंत्रण होता है  हिमांशु जैन अनुसार माताजी ने आगे बताया कि आज का तापमान 50 डिग्री से भी अधिक है आप कहते हैं महाराज माता जी इतनी गर्मी में  बगैर  पंखे कूलर   ऐसी  के कैसे रह रहे हैं ,जब साधु को आत्मा और शरीर का भेद विज्ञान हो जाता है तो वह शरीर को आत्मा का पड़ोसी मानते हैं इस कारण वह संसार शरीर के विषय भोगों के प्रति उदासीन रहते हैं ।स्वाध्याय से  गृहस्थ हिंसा से बचते हैं स्वाध्याय से जीवन अच्छा बन , कल्याण कर, जीवन का नया निर्माण होता है। स्वाध्याय से वैराग्य भाव बढ़ता है दीक्षा लेना ही वैराग्य नहीं है छोटे-छोटे व्रत नियम भी लेने से मन बैरागी बनता है। आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने मात्र 19 वर्ष की युवा अवस्था में सीधे मुनि दीक्षा ली थी आपके जन्म के पूर्व 12 भाई बहनों का निधन हो गया था। माता के निधन के बाद पिता और छोटा भाई जीवित होने पर  जीवन की नश्वरता को समझ कर दीक्षा सन 1969 में ली उस  समय अनेक लोगों ने ,विद्वानों ने कहा कि युवा यशवंत जी को मुनि दीक्षा मत दो आचार्य श्री ने कहा ठीक है आपकी उम्र हो गई है आप आ जाओ मैं आपको दीक्षा देता हूं।  इसलिए जीवन में वैराग्य आना चाहिए एक सफेद  बाल के देखने  वाले जीव दीक्षा ले लेते हैं। भोजन की थाली में सफेद चावल आने पर भोजन समाप्ति का सूचक होता है, युद्ध में सफेद झंडा लहराने पर युद्ध समाप्त हो जाता है आपके शरीर के सफेद बाल भी आपको वानप्रस्थ होने का संकेत दे रहे हैं। स्वाध्याय से मैत्री भाव बढ़ता है स्वाध्याय से  ज्ञान में वृद्धि होकर कषाय , पापों  और कर्मों का नाश होता है।

राजेश पंचोलिया इंदौर

तुझको रुकना नहीं बराबर चल



तुझको रुकना नहीं बराबर  चल 

मुक्तक 


1


तुझको रुकना नहीं बराबर  चल

सर झुकाकर  नहीं उठाकर चल

पाप  के   पर्वतों  पे  मत  चढ़ना

तू  सदा पुण्य  की धरा  पर चल


2


ख़ुद को हर दुख से दूर कर ले तू

चाहतों   में  भी  नूर  भर  ले   तू

ज़िन्दगी  तब    ही   मुस्कुराएगी

प्यार  कुछ तो  ज़रूर  कर  ले तू


3


इस  ज़माने   की  चोट  सहने दे

इसको अपनी ही धुन में बहने दे

खिल उठेगी ये तप के क॔चन सी

अनुभवों  की  तपिश में रहने  दे


4


अपने घावों  को  खिलखिलाने दे

अपना दुख  भी   इन्हें   सुनाने  दे

टीसते     ही    रहेंगे      ये    वरना

इनको   भी   खुलके  मुस्कुराने दे



डॉ जयसिंह आर्य दिल्ली

हाय यह रोटी




हाय यह रोटी 

अच्छाई की जड़ है रोटी 

बुराई की जड़ है रोटी 


करती है कुकर्म को प्रेरित 

चोरी डकैती हत्या को उद्यत

गर रोटी पेट में है तो

सारा जहां खूबसूरत 

 रोटी नहीं है पेट में तो

 सारा वैभव बदसूरत है।


दो जून की रोटी के लिए ही तो 

खपता है आदमी सुबह से शाम तक 

भरता है पेट कहीं मुश्किल से तब 

काश रोटी तू ना होती तो 

यह चोरी डकैती क्यों होती ?


बुराई की जड़ है रोटी 

अच्छाई की जड़ है रोटी 


आशा जाकड़

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