चूक हो रही है

चूक हो रही है 


(रात्रि भोजन का बढ़ता प्रचलन)


कल टेलीविजन पर एक प्रभावी/यशस्वी प्रवक्ता से सुन रहा था कि उन्होंने किसी नगर में प्रेरणा दी कि "जैन धर्मशाला में किसी भी कार्यक्रम में रात्रि भोजन नहीं कराया जाना चाहिए तो अधिकारियों ने वहाँ नोटिस लगा दिया कि यहाँ वैवाहिक आदि कोई भी कार्यक्रम हो उसमें रात्रि भोजन निषिद्ध है।"

 इसका फल यह हुआ कि उस धर्मशाला में जैनों द्वारा किए जाने वाले सभी कार्यक्रम बंद हो गए और पास के होटल में जाकर लोग कार्यक्रम करने लगे और जिससे उस होटल वाले को इतना फायदा हुआ कि 3 वर्ष में दूसरा होटल खोल दिया।

यह बात वह भी दुखित हो करके ही कह रहे थे और जब मैंने सुना तब मुझे भी बहुत शर्मिंदगी और दुख हुआ।


हम भव्य भवनों के निर्माण, विशाल जिन मंदिरों के निर्माण, करोड़ों में आयोजित होने वाली पंचकल्याणकों, चातुर्मासों, तीर्थ यात्राओं एवं अन्य अन्य अनेक रूपों में केवल अपने धन का प्रदर्शन करते हुए धर्म को स्थायित्व देना चाह रहे हैं धर्म की प्रभावना करना चाह रहे हैं।

हम यह भूल ही रहे हैं की धन से प्रभावना नहीं होती; आचरण से प्रभावना होती है धन बढ़ रहा है, धन का प्रदर्शन बढ़ रहा है। धन से नए-नए आयोजन हो रहे हैं; लेकिन धार्मिक आचरण घटता चला जा रहा है। समाज में युवा वर्ग पूरी तरह से रात्रि भोजन की गिरफ्त में है । जैनों के 90% पारिवारिक कार्यक्रम रात्रि भोजन पूर्वक ही हो रहे हैं ।

जो मंदिरों में प्रतिमाएँ विराजमान करते हैं, स्वाध्याय भवनों में स्वाध्याय सुनते हैं, पंचकल्याणकों में इन्द्र बनते हैं, मुनिराजों को आहार दान करते हैं वे भी जब  हजारों लोगों को आमंत्रित कर रात्रि भोजन कराते हैं तब शर्म से मस्तक झुक जाता है । 


हम किनके भरोसे यह जैन धर्म पंचम काल के अंत तक चलता हुआ देख पाएंगे ?


हम सभी के द्वारा बहुत बड़ी चूक हो रही है । रात्रि भोजन का त्याग, छानकर पानी पीना, और प्रतिदिन जिन दर्शन करना यह जैन के प्राथमिक बाह्य लक्षण हैं। लक्षण से लक्ष्य की पहचान होती है । जब लक्षण/चिन्ह ही गायब हो जाएगा तब फिर लक्ष्य कहाँ मिलेगा ?😳

रात्रि भोजन करने-कराने में  त्रस जीवों की हिंसा होती है । त्रस जीवों की हिंसा होना माने मांसाहार करने/कराने जैसा पाप लगता है । 😞

इतने बड़े पाप कर के और जैन संस्कृति का नाश करने का महापाप करके भी हमारे हृदय क्यों नहीं पसीज रहे हैं ?🥱🤭

क्यों हमारा मन इतना कठोर होता चला जा रहा है कि चाहे हिंसा हो, चाहे संस्कृति का नाश हो, विद्वानों /मुनिराजों/आचार्यों के वचनों का उल्लंघन हो फिर भी हम प्रदर्शन करेंगे; फिर भी हम दिखावा करके हजारों लोगों को रात्रि भोजन कराके पाप कमाएंगे। इतनी हृदय में निष्ठुरता क्यों आ रही है ?


शायद हमारे पास जो धन आ रहा है वह पापानुबंधी पुण्य के उदय एवं गलत मार्ग से आ रहा है जिस कारण वह पैसा जिन-जिन के पेट में भोजन पहुँचाने में निमित्त बन रहा है उन सब के हृदय भी कठोर, निर्दई, भोग प्रधानी बनते चले जा रहे हैं।


 हो सकता है आपको कुछ शब्द कठोर लग रहे हों। कृपया क्षमा कीजिएगा लेकिन मैं प्रत्येक पाठक से निवेदन🙏🙏 कर रहा हूँ कि समाज व परिवार में कैसे भी करके यदि हम दिन में भोजन करने-कराने का वातावरण न बना सके तो जैनत्व का लोप ही हो जाएगा। धर्म भवनों से नहीं, भावनाओं से चलता है भावनाएं मर जाएंगी, भावनाएं कलंकित हो जाएंगी, तो धर्म कहाँ रहेगा❓

 मित्रों यदि आप स्वयं अपने बेटे-बेटियों को केवल तीन नियमों का पालन करना सिखा दें कि जिन दर्शन किए बिना किसी विशिष्ट परिस्थिति को छोड़कर भोजन ग्रहण नहीं करना, रात्रि भोजन नहीं करना और छान करके पानी पीना । (चाहे  आप किसी कारण विशेष से आरो आदि मशीन लगाएं तो भी अच्छे कपड़े से पानी छानकर के ही उपयोग में लें ) यदि यह नियम आपने अपनी पीढ़ी को दिला दिए तो आपने अपनी पीढ़ियों को सुरक्षित कर दिया। वह पीढ़ी होटलों में नहीं जाएगी, वह पीढ़ी किसी भी विधर्मी के साथ भोजन नहीं करेगी, अन्य किसी लाल- पीले मंदिरों में जाकर के तिलक नहीं लगाएगी, फोटो नहीं खिंचाएगी तो विधर्मी संबंध भी नहीं होंगे और आपका कुल सुरक्षित रहेगा, आप का भव सुधरेगा ।


मित्रो!आप कई बार स्वयं की परिस्थिति न होते हुए भी बाहर में दिखावा करते हैं, ऋण लेकर भी कुछ खर्च करते हैं, जिससे कि परिवार की शान बड़े, नाम हो; तो क्या आप अपनी समाज व अपने परिवार के नाम के लिए क्या आप बाहर सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए रात्रि भोजन का त्याग नहीं कर सकते भले दिखावा ही सही; लेकिन जैन संस्कृति के प्रचार के लिए ही यदि आप रात्रि भोजन के त्याग के संबंध में कहेंगे तो भी पुण्य बँधेगा।

 हमारे युवाओं को लग सकता है कि यह तो छल हुआ । इससे तो पाप लगेगा !!

आप पाप क्यों लगाते हैं ? आप यही कहिए- "हम कहीं बाहर सार्वजनिक स्थान पर रात्रि भोजन नहीं करते । घर में मजबूरी बस करना होता है तो कर लेते हैं ।" तो आप छल भी नहीं करेंगे; विचार कीजिएगा।


अभी बहुत विकृति आ रही है इस समय हम सब से बहुत चूक हो रही है । सावधान होने का बहुत की बहुत आवश्यकता है, अन्यथा हम भव-भव में पछताएंगे😳 । एक जन्म में किए गए पापों का फल न जाने कितने भवों तक मिलेगा। आज के जो हमारे बेटे-बेटियाँ हैं वे ही मक्खी मच्छर बनकर वहीं घास में पैदा होकर वहीं कुचले जाएंगे, तले जाएंगे, काटे जाएंगे क्या आप यह सब देखना पसंद करेंगे

निवेदक

 समर्पण 

समर्पण व्यक्ति नहीं भावना है। 

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