कोपरगांव सम्मेलन में पंथ, ग्रन्थ और संत व्यामोह में नहीं पड़ने का प्रस्ताव पास
कोपरगांव। समाज को पंथ, ग्रन्थ और संतवाद के व्यामोह में नहीं पड़ना चाहिए इस आशय का प्रस्ताव कोपरगांव में 1-2 अप्रैल को हुए 9 संस्थाओं के बृहद् विद्वत्सम्मेलन में पारित किया गया। जिसके प्रस्तावक शास्त्रि परिषद् के महामंत्री ब्र. जयकुमार निशांत जैन प्रतिष्ठाचार्य व श्री अ. भा. दि. जैन विद्वत्परिषद के महामंत्री डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’ थे तथा समर्थक पं. विनोद कुमार जैन प्रतिष्ठाचार्य, ब्र. राकेश जैन, भिण्ड व पं. कमलकुमार जैन थे। प्रस्ताव इस प्रकार है- ‘‘जिनकारणों (पंथ, ग्रंथ एवं संत व्यामोह ) से समाज निरन्तर बँटती जा रही है, हमारा सामाजिक, राजनैतिक एवं धार्मिक प्रभाव निष्क्रिय होता जा रहा है। यदि इस पर समय से अंकुश नहीं लगाया जायेगा तो भविष्य में जैन संस्कृति, पुरातत्त्व एवं श्रमण संस्कृति का अस्तित्व बचाना संभव नहीं होगा। हम अगली पीढ़ी को अलगाव-विघटन न सौंपकर समग्र जैन समाज को संगठित कर देव-शास्त्र-गुरु का संरक्षण स्थायित्व के साथ सौंपें।’’
इसी के साथ उक्त कार्यक्रम में 9 अन्य प्रस्ताव भी पारित किये गये-
1. देव-शास्त्र-गुरु हम सभी जैनों के आराध्य हैं, हम सभी का कर्तव्य है कि इनकी गौरव गरिमा को बनाए रखने के लिए भाषा समिति का पालन किया जाए। णमोकार मंत्र पर श्रद्धा रखने वाले सभी जैन हैं, किसी के प्रति भी अनादर का भाव न रखने की प्रतिबद्धता हो।
2. शासन की विभिन्न योजनाओं से सक्रियता एवं विधि सम्मत रीति से जुड़कर उनका लाभ शास्त्र संरक्षण, (सूचीकरण, संरक्षण, अनुवाद, तुलनात्मक अध्ययन) हेतु किया जाना चाहिए। एतदर्थ एक 5 सदस्यीय राष्ट्रीय समिति गठित की जानी चाहिए।
3. प्रत्येक संघ में स्वाध्याय की व्यवसथा सुचारु रूप से चलना चाहिए।
4. समाज प्रतिवर्ष दो पुरातत्त्व और वास्तुविद्या के अध्येताओं को सहयोग प्रदान करे। विद्वानों से निवेदन है कि प्रशस्तियां पढ़ने और पुरातत्त्व को समझने का पुरुषार्थ करें।
5. अपनी परम्परा अपने गांव के मंदिर या अपने घर में रखें (चलाएं)। बाहर सबको जैनत्व का सन्देश दें।
6. धर्मसंवर्धन, श्रुतसंवर्धन और तीर्थसंरक्षण हेतु देश के नगर-नगर और गांव-गांव में पाठशालाएं खोली जाएँ।
7. सम्पूर्ण समाज से यह सम्मेलन आग्रह करता है कि आप सभी तीर्थ क्षेत्रों की वन्दना वर्ष में एकवार अवश्य करें, जिससे तीर्थों पर जैन श्रावकों का सतत आना-जाना रहेगा, जैन धर्मावलम्बियों की उपस्थिति में विधर्मी लोग तीर्थों पर कब्जा आदि नहीं कर पायेंगे।
8. जातीय व्यवस्था एवं कुलशुद्धि का जैनागम में विशेष कथन मिलता है, जो वर्तमान में सिथिल होती जा रही है, उसके अनुसार जातीय व्यवस्था एवं कुलशुद्धि अनिवार्य है। समाज से आग्रह है कि धार्मिक और सामाजिक अनुष्ठानों में उक्त व्यवस्थाओं का अनुपालन किया जाए।
9. आचार्य श्री विशुद्धसागर जी ससंघ के सान्निध्य और शास्त्रिपरिषद् के तत्त्वावधान व डॉ. श्रेयांस कुमार जैन बड़ौत की अध्यक्षता में जैन राष्ट्रीय साधर्मी समाज सहयोग प्रतिष्ठान कोपरगांव (महाराष्ट्र) द्वारा दिनांक 1 एवं 2 अप्रैल 2024 को आयोजित जैन राष्ट्रीय विद्वत्सम्मेलन को विशेष सफलता के साथ संपन्न करने में योगदान हेतु कोपरगांव दि. जैन समाज, श्री सुधीर कुमार बज व अनंतकुमार जैन बज के अनथक परिश्रम की प्रशंसा करते हुए आभार प्रकट करने का प्रस्ताव पास किया गया।